रघु मालवीय, भोपाल
कोरोना महामारी से जूझ रहे देशवासियों को जितना डर कोरोना से नहीं है,उससे कहीं ज्यादा आज के सिस्टम से है। आज किसी परिवार के एक सदस्य को नार्मल बुखार भी आ जाता है,तो वह खौफज़दा हो जाता है,वह इलाज के लिए अस्पताल जाने से घबरा जाता है। मौसमी सर्दी जुकाम और खांसी होने पर आदमी सहम जाता है। स्वास्थ्य सेवाओं पर उठते सवाल और इससे जुड़े कुछ लोगों के क्रियाकलापों की वजह से आए दिन समाचार पत्रों और सोशल मिडिया पर जो खबरें आ रही है,वह काफी डराने वाली है,लोग आज मामूली बुखार या सर्दी जुकाम की दवा लेने सरकारी अस्पताल जाने से डर रहा है,उसे डर है कहीं कोरोना बता कर अस्पताल में भर्ती न कर दे,इतना ही नहीं शहर के बड़े-बड़े नर्सिंग होम के डाक्टर भी बुखार के मरीजों को देखने से कतरा रहे हैं।

आखिर आम इंसान बीमार होने पर अपना इलाज कहां और कैसे कराए। इस व्यवस्था को सुधारना होगा,लोगों में जो अविश्वास की भावना पैदा हुई है,उसे दूर करना होगा। राजधानी भोपाल में पिछले माह दो अस्पतालों के विवाद के दौरान एक कोविड व्यक्ति का शव सड़क के किनारे घंटों फुटपाथ पर पड़ा रहा,अभी हाल ही में सोशल मिडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक पिता का दर्द सुनने को मिला,वह अपनी जवान बेटी का इलाज कराने हमीदिया अस्पताल लेकर आया था,जो वापस अपनी बेटी की लाश लेकर लौटा। यह सज्जन अपनी बेटी की मौत के लिए अस्पताल के डाँक्टरो को जिम्मेदार ठहरा रहे है।

पिछले मई और जून माह के दौरान शहर के अनेक लोगों ने कोरोना को लेकर जो पीड़ा झेली है,जो दर्द सहा है,उसे सोचकर ही घबरा जाता है। कोरोना संक्रमित लोगों ने और उनके परिजनों ने अस्पताल में और संदिग्ध मरीजों ने कोरंटाईन सेन्टरों में रहकर जो अव्यवस्थाएं देखी है,उसे याद कर वह आज भी सहम जाते है।

सैम्पल के बाद आने वाली जांच रिपोर्ट में भी कई खामियां सामने आई है,जिनके सैम्पल का टेस्ट निगेटिव था। उनकी रिपोर्ट पाॅजिटिव आई और जिसका पाॅजिटिव था,उसकी रिपोर्ट निगेटिव आई। इसके चलते कई लोगों को अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा,कोरोना संक्रमितों के बीच रहने से जो निगेटिव थे,वह भी संक्रमित हो गये। कोरोना संक्रमण से मुक्त होकर आए कुछ लोगों से मेरी चर्चा हुई तो उन्होंने घर से ले जाने से लेकर अस्पताल में इलाज के दौरान जो अव्यवस्था झेली है,उसे किसी ख्वाब की तरह भूल जाना चाहते है। परिवार के किसी एक सदस्य की जांच रिपोर्ट पाॅजिटिव आने के बाद से ही उसके साथ परेशानी की शुरुआत हो जाती है।

पुलिस के साथ सायरन बजाते हुए एम्बुलेन्स की मेडिकल टीम घर के सामने रूकती है,और उसमें से तेज रफ्तार के साथ पीपीई किट पहने तीन चार लोग उतरते है,संक्रमित व्यक्ति को साथ ले जाते है और अस्पताल में भर्ती कर देते है,घर वालों को अस्पताल तक की जानकारी नहीं मिल पाती थी कि उनके पिता या भाई कहां है,जबकि बाकि परिवार के सदस्यों को कोरंटाईन के लिए अलग-अलग जगह भेजा जा रहा था। जहां कई तरह की अव्यवस्थाओं के बीच उन्हें 14 से 20 दिन रहना पड़ा। छोटे-छोटे बच्चों के साथ घर से दूर अनजान जगह पर रखा गया,कई घंटे इंतजार के बाद उन्हें नाश्ता व खाना मिलता था।
 

Source : ▪️ लेखक दैनिक अखण्ड दूत भोपाल के प्रधान संपादक हैं